उत्थान
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पंकज असमंजस हरौ, प्रभु किस संग खेलूँ होली,
पत्नी से प्यारी लगैं, उसकी सखी सहेली.
उसकी सखी सहेली, बरबस मन ललचावैं,
वस्त्र सरोबर रस यौवन का पान करावैं.
कान्हा रास रचैया, उन संग आज भिगा दो,
पर, मेरी भार्या ना भीगें निश्चिन्त करा दो.
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