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कर ले शामिल

उत्थान
उत्थान
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शायर नहीं तो क्या, हमें अलफ़ाज़ की पहचान है;
ये नज़्म नहीं, ये तो तेरी ही अनकही दास्तान है.

गिनते हैं खुद को भी शामिल तेरी कतारे हमदम में,
कर ले शरीक हमको भी तेरे अह्सासे ग़म में.

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