शायर नहीं तो क्या, हमें अलफ़ाज़ की पहचान है; ये नज़्म नहीं, ये तो तेरी ही अनकही दास्तान है.
गिनते हैं खुद को भी शामिल तेरी कतारे हमदम में, कर ले शरीक हमको भी तेरे अह्सासे ग़म में.
.
Your email address will not be published. Required fields are marked *
Comment
Name *
Email *
Website
Read Comments