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ड्राइविंग करते समय यह तो नहीं करते आप?

उत्थान
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    संकट-चेतावनी-कौंधक या HAZARD-WARNING-FLASHER ; जी हाँ यही नाम है, जिसको हम आम-तौर पर अपनी कार में ‘पार्किंग ब्लिंकर्स (PARKING BLINKERS)’ या पार्किंग लाइट्स के नाम से जानते हैं. भारत देश में यह सामान्यतः सर्वाधिक दुरुपयोग की जाने वाली वाहन चालन प्रवत्ति है.
    वर्षा ऋतु प्रारम्भ होते ही प्रायः सभी चालक इसका भरपूर प्रयोग करते पाये जाते हैं. वर्षा के अतिरिक्त कोहरे, सुरंग अथवा घने बादलों की स्थिति में भी हम पार्किंग लाइट्स का प्रयोग करना नहीं भूलते. या यूं भी कह सकते हैं कि जब भी कभी हमें दृश्यता (Visibility) की कमी प्रतीत हो, परन्तु फिर भी हम अपनी गति धीमी ना करना चाहें, तो मानो हमें इन ब्लिंकर्स को प्रयोग करने की पूरी स्वतंत्रता है.
    वाहन चलाते समय ब्लिंकर्स का प्रयोग करना गलत है. वैज्ञानिक रूप से भी, नैतिक रूप से भी, वैधानिक रूप से भी एवं प्रायोगिक रूप से भी.
    वैज्ञानिक दृष्टिकोण : हम सभी ये ब्लिंकर्स प्रायः इसीलिए प्रयोग करते हैं कि हमसे पीछे चलने वाले वाहन दूर से ही हमारी स्थिति ज्ञात कर सकें. विज्ञान कहता है कि लाल रंग का प्रकाश सर्वाधिक दूर से अपना आभास करा सकता है. इसीलिये अनिवार्य रूप से सभी खतरे के चिन्ह लाल रंग के होते हैं, और यही आदर्श विश्व के सभी देशों में मान्य है.
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    पार्किंग ब्लिंकर्स पीले रंग के होते हैं. अतः बहुत दूर से अपनी स्थिति का आभास कराने की इनकी क्षमता सीमित होती है. यदि आप सचमुच ये चाहते हैं कि अन्य चालक आपको दूर से देख सकें तो अपने वाहन की हेड-लाइट्स, जांच स्थान (Test-Position या First-Position) पर जलाएं. इससे आपके वाहन की पीछे की बत्ती (टेल-लैम्प्स) जल जाएंगी जो कि लाल रंग की होती हैं. ये टेल-लैम्प्स, ब्लिंकर्स की अपेक्षा अधिक दूर से दिखाई देते है.
    नैतिक दृष्टिकोण : सड़क दुर्घटनाओं की भयावहता से हम सभी भली-भाँति परिचित हैं. इसीलिए वाहन चलाते समय सभी को शांत एवं स्थिर मानसिक अवस्था में रहने की सलाह दी जाती है. अधिक क्रोध, खीझ अथवा गहन दुःख की अवस्था में वाहन चलाना उपयुक्त नहीं माना जाता है.
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    निरंतर जलती-बुझती ये बत्तियां चालक में खीझ उत्पन्न करती हैं. यदि अधिक ट्रैफिक हो, और सभी ब्लिंकर्स प्रयोग कर रहे हों, या फिर चालक की पूर्व-अवस्था शांत ना हो तो और अधिक चिढ़, खीझ एवं कुछ क्रोध स्वाभाविक है. ध्यान रखें कि किसी भी चालक में यह चिढ़, खीझ एवं क्रोध एक भयानक दुर्घटना का कारण बन सकता है.
    प्रायोगिक दृष्टिकोण : वाहन में दायें अथवा बाएं मुड़ने के सूचक के रूप में इन संकेतकों (Indicators) का प्रयोग किया जाता है. जब हम इनको टर्निंग इंडीकेटर्स के स्थान पर ब्लिंकर्स की तरह प्रयोग करते हैं तो दोनों सूचक (बाएं एवं दायें मुड़ने के), एक साथ जलते बुझते हैं. यह अन्य चालकों को गलत सूचना देता है तथा उन्हें भ्रमित करता है. एक तो दृश्यता की कमी फिर खीझ और अब ये गलत सूचना अथवा भ्रम ; दुर्घटना के सारे कारण उपस्थित हैं.
    वैधानिक दृष्टिकोण : विश्व के कई देशों में वाहन चलाते समय ब्लिंकर्स का प्रयोग करना पूर्णतया वर्जित है. कुछ देशों में तो अनुज्ञा-पत्र (License) रद्द किये जाने का भी प्रावधान है. भारत में यातायात नियंत्रण राज्य सरकारों के अधीन है अतः यहाँ पर भिन्न राज्यों में भिन्न नियम हो सकते हैं, जिनके बारे में सम्पूर्ण जानकारी मुझे नहीं है. पर फिर भी मेरे व्यक्तिगत विचार यही हैं कि उपरोक्त कारणों को ध्यान में रखते हुए बिना आवश्यकता ब्लिंकर्स का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
    ब्लिंकर्स का प्रयोग कब : इन ब्लिंकर्स का प्रयोग केवल संकट का आभास होने पर अचानक से गाड़ी रोकते समय या फिर गाड़ी रोकने के बाद ही करना चाहिए. यदि दृश्यता में कमी के कारण आपको असुविधा हो रही है तो कृपया गाड़ी को एक और ले जाकर रोक लें, और पर्याप्त प्रकाश होने पर ही दोबारा चलाये. कोहरे की स्थिति से निबटने के लिए आज-कल लगभग सभी वाहनों में फॉग-लैम्प्स होते ही हैं. उनका प्रयोग, दृश्यता से जुड़ी अन्य अवस्थाओं (जैसे बहुत तेज़ बारिश या फिर घने बादल) में भी किया जा सकता है.
    सुरक्षित चलें. जीवन बहुमूल्य है.

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    पंकज जौहरी.

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