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हिंदी भाषण – कितना उचित?

उत्थान
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    हमारे अहं को तुष्टि तो अवश्य मिली, किंतु…

    असमंजस में हूँ कि यदि मेरे घर पर आयोजित किसी समारोह में मेरे सारे मित्र अपनी-अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में ही बात करें तो क्या मुझे अच्छा लगेगा? क्या अन्य अतिथियों को अच्छा लगेगा? क्या मैं उनका सम्मान करूँगा कि वे अपनी भाषा पर गर्व करते हैं? या फिर ये मुझे उनकी संकीर्णता लगेगी?

    संयुक्त राष्ट्र महासभा में वे सारे प्रतिनिधि, जिन्होंने आधिकारिक भाषा का प्रयोग नहीं किया, उन्होंने ऐसा इसलिए किया कि उन्हें उस भाषा का ज्ञान ना के समान था.

    संभवतः इसी कारण हमारे प्रधानमंत्री के भाषण के समय 70 प्रतिशत सभा अनुपस्थित थी.

    हमारे अहं को तुष्टि तो अवश्य मिली किंतु भारत जैसे विशालकाय एवं महत्वपूर्ण देश के संबोधन में 70 प्रतिशत सभा-शून्यता क्या हमारा अपमान नहीं? क्या हमारा गर्वानुभव इस मूल्य को चुका सकता है?

    देशवासियों के तुष्टिकरण के प्रयास में कहीं हम वैश्विक पटल पर अपनी दंभी छवि तो प्रस्तुत नहीं कर रहे?

    और हाँ, इस बार प्रधानमंत्री अपने भाषण में कई स्थानों पर अटके, और पढ़कर बोले. कई स्थानों पर शब्द एवं उच्चारण भी त्रुटिपूर्ण था. कहीं भाषा के पूर्वाग्रह ने ही तो मोदी की ओजमई और प्रभावशाली शैली को ग्रसित नहीं कर दिया?

    अत्यंत प्रसन्नता होगी यदि कभी हिन्दुस्तान का कोई प्रधानमंत्री, हिन्दुस्तान के भीतर, हिन्दुस्तान के ही राज्य तमिलनाडु में किसी महासभा को हिन्दी में संबोधित कर पाये. क्या ये संभव है? आज तो ये मात्र दिवास्वप्न लगता है.

    पंकज जौहरी.

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